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वसीम बरेलवी शायरी, कविता और ग़ज़ल का संग्रह | वसीम बरेलवी की शायरी
वसीम बरेलवी एक प्रसिद्ध कवि हैं। उनकी ग़ज़ल मुशायरा के लिए बहुत लोकप्रिय है, जो उनकी कविता का प्रतिष्ठित पाठ है। वह मुशायरा की दुनिया के बीच दुनिया भर में जानी जाने वाली एक महान हस्ती हैं। उन्होंने जश्न-ए-रेख्ता में अपनी ग़ज़ल का पाठ किया।
वसीम बरेलवी या वसीम बरेलवी, ज़ाहिद हुसैन का कलम नाम है, जिनका जन्म 8 फरवरी 1940 को उत्तर प्रदेश के बरेली में हुआ था, जो एक प्रसिद्ध भारतीय उर्दू कवि थे। जगजीत सिंह द्वारा गाए गए उनकी ग़ज़लें बहुत लोकप्रिय हैं। उन्हें "फिराक गोरखपुरी अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार", कालिदास स्वर्ण पदक (हरियाणा सरकार द्वारा, उर्दू कविता के क्षेत्र में उनकी सेवाओं के लिए मान्यता में) से सम्मानित किया गया है; बेगम अख्तर कला धर्मी पुरस्कार; और नसीम-ए-उर्दू पुरस्कार। बरेलवी नेशनल काउंसिल फॉर प्रमोशन ऑफ़ उर्दू लैंग्वेज (NCPUL) के उपाध्यक्ष हैं। उन्होंने कुलव 2012 (एनआईटी इलाहाबाद का सांस्कृतिक कार्यक्रम) में भी प्रदर्शन किया है।
वसीम बरेलवी उर्दू के लोकप्रिय शायर हैं और आम से लेकर ख़ास तक सभी उनके शेर का सहारा अपनी बात कहने के लिए लेते हैं। पेश कुछ ऐसे ही चुनिंदा शेर हैं
❤️ चयनित कार्य
❤️ चरघ
-तबस्सुम-ए-ग़म
M आंसु मेरे दमन तेरा
Aj मिजाज
A आकांह आसु हुई
Ya मेरा क्या
On आंखें आंखें राहे
Ya मेरा क्या
And मौसम अन्दर बहार के
वसीम बरेलवी शायरी और ग़ज़ल का संग्रह - वसीम बरेलवी की शायरी और ग़ज़ल का संग्रह
लहू न हो तो क़लम तरुज़मा नहीं होती
मिली हवाओं में उड़ने की वो सज़ा यारो
ज़रा सा क़तरा कहीं आज गर उभरता है
कौन-सी बात कहाँ, कैसे कही जाती है
अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे
अपने हर लफ़्ज़ का ख़ुद इना हो जाऊँगा
उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना जरूरी है
कही सुनी पे बहुत एतबार करने लगे
ज़ेन मुख्य पाँई के बड़ल अगार अते होते - ज़हन में पानी के बादल अगर आये हों
बूरे ज़माने की कबी पूँछ कर न आटे - बुरे ज़ने कभी पूछ मत आना
कौन सी बात कहती है क्या बात है - कौन सी बात कहाँ कैसे कही जाती है
उसोलोन पे जहान आंच आके तरण झरोड़ी है - उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है
मुख्य है ummeed pe dooba ke tu bacha lega - मैं इस उम्मीद में डूबा कि तू बचा लेगा
अपना चेहेरे से जो ज़हीर है छुपाये काइसे - अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाये है कैसे
अते आटे मेरा नाम सा गया - आ-आ मेरा नाम सा रह गया
रा त के टुकडों पे पलना छोड दे - रात के टुकड़ों पे पलना छोड़ दे
हुस्न बज़ार हुआ क्या क्या ह्म - हुस्न बाजार हुआ क्या हुनर ख़त्म हुआ
काहे तक आंख रोयेगी काहे को किसका गम हो गया - जहां तक नजर रोएगी जहां तक सही नहीं होगा
खुल के मिल्ने का सेलेका अपना तो नाही - खुल के मिलना का सलीक़ा आपको नहीं आएगा
Paron ki ab ke nahi, Hauslon ki bari hai - परों की अब नहीं हौसलों की बारी है
उमरा बहार किस किस को प्यार करूं में - उम्र भर किस-किस के हिस्से का सोनार मैंने किया
क्या दुःख है, समंदर को बाता नहीं, क्या - क्या दुःख है, समंदर को बता भी नहीं सकता
उर्दू के पास एक जादुई आकर्षण है जो कोई अन्य भाषा प्रदान नहीं करती है। और लोग अपनी काव्य संवेदनाओं और अपूर्व परिष्कार के लिए इस काव्य भाषा की ओर आकर्षित होते हैं। हमारे पास जितने भी उर्दू कवि हैं, उनमें वसीम बरेलवी एक प्रसिद्ध नाम है। उनकी शायरी प्यार और जुनून से परिपूर्ण है और यह दिल को बहलाने के लिए आये आस्था और अकेलेपन से रूबरू कराती है।
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Last updated on Aug 30, 2024
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Тигран Шэстаков
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Waseem Barelvi Famous Shayari
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Aug 30, 2024