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बहुत बढ़िया भजन
1 हे मेरे मन, यहोवा को धन्य कह! हे मेरे परमेश्वर यहोवा, तू बहुत महान है; तू आदर और प्रताप का पहिरावा पहिने हुए है।
2 वह नूर को वस्त्र की नाईं ओढ़े रहता है, और आकाश को परदे की नाईं ताने रहता है;
3 वह अपनी कोठरी की कडिय़ां जल में रखता है, और मेघोंको अपना रथ बनाता है, और पवन के पंखोंपर चलता है।
4 वह अपके दूतोंको आत्मा बनाता है; उनके मंत्री एक धधकती आग:
5 उसी ने पृय्वी की नेव डाली, कि वह सदा के लिथे कभी टल न जाए।।
6 तू ने उसको गहिरे समुद्र से ऐसा ढांप दिया जैसा कपड़े से भरा है; जल पहाड़ोंके ऊपर ठहर गया।
7 तेरी डांट से वे भागे, तेरे गरजने के शब्द से वे फुर्ती से चले गए।
8 वे पहाड़ों पर चढ़ जाते हैं, वे तराइयों के मार्ग से उस स्थान तक उतरते हैं, जो तू ने उनके लिये तैयार किया है।
9 तू ने ऐसा सिवाना बान्धा है कि वह उसे लांघ न सके; कि वे फिर मुड़कर पृथ्वी को न ढांपें।
10 वह सोतोंको नालोंमें भेजता है, जो पहाडिय़ोंसे बहते हैं।
11 वे मैदान के सब पशुओं को पानी पिलाते हैं, और जंगली गदहे अपनी प्यास बुझाते हैं।
12 उनके पास आकाश के पक्की बसेरा करेंगे, जो डालियोंमें से चहचहाते हैं।।
13 वह अपक्की कोठरियोंमें से पहाडिय़ोंको सींचता है; पृय्वी तेरे कामोंके फल से तृप्त होती है।।
14 वह पशुओं के लिथे घास, और मनुष्योंके काम के लिथे सागपात उपजाता है, जिस से वह भूमि से भोजनवस्तु उत्पन्न करे;
15 और दाखमधु जिस से मनुष्य का मन आनन्दित होता है, और तेल जिस से उसका मुख चमकता है, और रोटी जिस से मनुष्य का मन दृढ़ होता है।
16 यहोवा के वृझ रस से भरे हुए हैं; लबानोन के देवदार, जो उस ने लगाए;
17 जहां पक्षी अपना बसेरा बनाते हैं; लगलग का घर उसका घर सनौवर है।।
18 ऊंचे ऊंचे पहाड़ बनैले बकरोंके लिथे शरणस्थान हैं; और शंकुओं के लिए चट्टानें।
19 उसने चंद्रमा को ऋतुओं के लिथे ठहराया है: सूर्य उसका अस्त होना जानता है।
20 तू अन्धकार करता है, और रात हो जाती है, जिस में वन के सब जीव जन्तु विचरते हैं।
21 जवान सिंह अपके अहेर के पीछे गरजते हैं, और परमेश्वर से अपना आहार मांगते हैं।
22 सूर्य उदय होता है, वे अपके अपके को इकट्ठे करते, और अपक्की मांद में रखते हैं।
23 सांझ तक मनुष्य अपके काम और परिश्रम के लिथे निकल जाता है।
24 हे यहोवा, तेरे काम अनगिनित हैं! तू ने सब को बुद्धि ही से बनाया है; पृय्वी तेरे धन से भरपूर है।
25 वैसे ही यह बड़ा और चौड़ा समुद्र है, जिस में अनगिनित जीवजन्तु, क्या छोटे, क्या बड़े जीव जन्तु रेंगते हैं।
26 वहां से जहाज चलते हैं, वह लिव्यातान है, जिसे तू ने उन में खेलने के लिथे बनाया है।
27 ये सब तेरी बाट जोहते हैं; जिस से तू उनका आहार समय पर उन्हें दिया करे।
28 जो तू उन्हें देता है, वे बटोर लेते हैं; तू अपक्की मुट्ठी खोलता है, वे उत्तम वस्तुओं से तृप्त होते हैं।
29 तू अपना मुख फेर लेता है, वे घबरा जाते हैं; तू उनका सांस ले लेता है, वे मर जाते हैं, और मिट्टी में मिल जाते हैं।
30 तू अपके आत्मा को भेजता है, वे सिरजे जाते हैं, और तू पृय्वी को नया कर देता है।
31 यहोवा का तेज सदा अटल रहेगा; यहोवा अपके कामोंसे मगन होगा।।
32 वह पृय्वी पर दृष्टि करता है, और वह थरथराती है; वह पहाड़ोंको छूता है, और उन से धूंआ उठता है।
33 मैं जीवन भर यहोवा का भजन गाता रहूंगा; जब तक मैं बना रहूंगा, तब तक अपके परमेश्वर का भजन गाता रहूंगा।।
34 उसके विषय में मेरा ध्यान मीठा होगा; मैं यहोवा के कारण आनन्दित रहूंगा।
35 पापी लोग पृथ्वी पर से मिट जाएं, और दुष्ट लोग फिर न रहें। हे मेरे मन, यहोवा को धन्य कह! यहोवा की स्तुति करो।
Last updated on Feb 15, 2023
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द्वारा डाली गई
حسين علي
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Psalm 104
1.4 by Apps Croy
Feb 15, 2023