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Panchatantra Stories in Hindi, Panchtantra Ki Kahaniyan
मित्रों, हममें से अधिकांश ने बचपन में ‘बाल-बुद्धि’ को सहज ही कुशाग्र बनाने वाली “पंचतन्त्र” की प्रेरक एवं मनोरंजक कहानियां अवश्य पढ़ी होंगी क्योंकि हिन्दी भाषा में लिखीं गईं इन कहानियों का हमारे देश की लगभग सभी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।इतना ही नहीं अंग्रेज़ी भाषा में अनुवादित होने के कारण ये कहानियाँ विश्व-विख्यात भी हैं।
History of Panchtantra Ki Kahaniyan
ञ्चतंत्र की ये कहानियाँ कब और क्यों लिखीं गईं ,इसके पीछे एक अत्यंत रोचक इतिहास है। कहते हैं कि प्राचीन काल में पाटलीपुत्र में ; जो आज पटना के नाम से विख्यात है, एक सुदर्शन नाम का अत्यंत गुणी राजा राज्य करता था।एक दिन उस राजा ने किसी कवि के द्वारा पढ़े जाते हुए दो श्लोक सुने.
राजा ने जैसे ही ये श्लोक सुने , तो उसे अपने नित्य कुमार्ग पर चलने वाले और कभी भी शास्त्रों को न पढ़ने वाले पुत्रों का ध्यान हो आया। अब तो वह अत्यधिक विचलित हो कर सोचने लगा
अब राजा सुदर्शन केवल इसी चिंता में घुलने लगा कि कैसे वह अपने पुत्रों को गुणवान् बनाये? क्योंकि –
वे माता-पिता जो अपने बच्चों को शिक्षा के सुअवसर उपलब्ध नहीं करवाते ,वे अपने ही बच्चों के शत्रु हुआ करते हैं क्योंकि बड़े होने पर ऐसे बच्चों को समाज में कोई भी प्रतिष्ठा नहीं मिलती जैसे हंसों की सभा में बगुलों को सम्मान कहाँ ? दूसरे, चाहे कोई व्यक्ति कितना भी रूपवान् क्यों न हो ,उसका कुल कितना भी ऊँचा क्यों न हो यदि वह ज्ञानशून्य है तो समाज में आदर का पात्र नहीं बन सकता जैसे कि बिना सुगंधी वाले टेसू के पुष्प देवालय की प्रतिमा का श्रृंगार नहीं बन सकते।
चिंतित एवं दुःखी मन होने के बावजूद भी राजा ने एक दृढ निश्चय कर ही लिया कि अब भाग्य के सहारे बैठना ठीक न होगा ,बस केवल पुरुषार्थ ही करना होगा।उसने बिना समय गंवाए पंडितों की एक सभा बुलवाई और उस सभा में आये पंडितों को अत्यंत सम्मानपूर्वक सम्बोधित करते हुए कहा—“क्या आप में से कोई ऐसा धैर्यशाली विद्वान है जो मेरे कुमार्गगामी एवं शास्त्र से विमुख पुत्रों को नीतिशास्त्र के द्वारा सन्मार्ग पर ला कर, उनका जन्म सफल बना सके ?”
मित्रों, विद्वानों की उस सभा में से विष्णु शर्मा नाम का एक महापंडित जो समस्त नीतिशास्त्र का तत्वज्ञ था, गुरु बृहस्पति की भांति उठ खड़ा हुआ और कहने लगा–“ राजन् !आपके ये राजपुत्र आपके महान् कुल में जन्मे हैं।मैं मात्र छह महीनों में इन्हें नीतिशास्त्र पढ़ा कर, इनका जीवन बदल सकता हूँ।” यह सुनकर अत्यधिक प्रसन्न हुआ राजा बोला –“एक कीड़ा भी जब पुष्पों के साथ सज्जनों के मस्तक की शोभा बन सकता है और महान् व्यक्तियों के द्वारा प्रतिष्ठित एक पत्थर भी ईश्वर की प्रतिमा का स्वरूप ले सकता है, तो निःसंदेह आप भी यह कठिन कार्य अवश्य कर सकते हैं।
अब राजा सुदर्शन ने बड़े सम्मान के साथ अपने पुत्रों को शिक्षा-प्राप्ति के लिए पंडित विष्णु शर्मा को सौंप दिया और उस विद्वान ने भी राजा के उन शास्त्रविमुख पुत्रों को मात्र छह महीनों में ; पशु-पक्षियों एवं जीव-जन्तुओं की मनोरंजक तथा प्रेरणादायक कहानियों के माध्यम से नीतिशास्त्र का ज्ञान करवाया जिससे उनका जीवन ही बदल गया। मित्रों, यही कहानियाँ ‘पंचतन्त्र की कहानियां’ कहलाती हैं जो हितोपदेश नामक ग्रन्थ का आधार हैं।
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