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अफ़ग़ानिस्तान का इतिहास आइकन

1.6 by Histaprenius


Nov 8, 2023

अफ़ग़ानिस्तान का इतिहास के बारे में

अफ़ग़ानिस्तान

आज जो अफ़गानिस्तान है उसका मानचित्र उन्नीसवीं सदी के अन्त में तय हुआ। अफ़ग़ानिस्तान शब्द कितना पुराना है इसपर तो विवाद हो सकता है पर इतना तय है कि १७०० इस्वी से पहले दुनिया में अफ़ग़ानिस्तान नाम का कोई राज्य नहीं था।

सिकन्दर का आक्रमण ३२८ ईसापूर्व में उस समय हुआ जब यहाँ प्रायः फ़ारस के हखामनी शाहों का शासन था। उसके बाद के ग्रेको-बैक्ट्रियन शासन में बौद्ध धर्म लोकप्रिय हुआ। ईरान के पार्थियन तथा भारतीय शकों के बीच बँटने के बाद अफ़ग़निस्तान के आज के भूभाग पर सासानी शासन आया। फ़ारस पर इस्लामी फ़तह का समय कई साम्राज्यों के रहा। पहले बग़दाद स्थित अब्बासी ख़िलाफ़त, फिर खोरासान में केन्द्रित सामानी साम्राज्य और उसके बाद ग़ज़ना के शासक। गज़ना पर ग़ोर के फारसी शासकों ने जब अधिपत्य जमा लिया तो यह गोरी साम्राज्य का अंग बन गया। मध्यकाल में कई अफ़ग़ान शासकों ने दिल्ली की सत्ता पर अधिकार किया या करने का प्रयत्न किया जिनमें लोदी वंश का नाम प्रमुख है। इसके अलावा भी कई मुस्लिम आक्रमणकारियोंं ने अफगान शाहों की मदत से भारत पर आक्रमण किया था जिसमें बाबर, नादिर शाह तथा अहमद शाह अब्दाली शामिल है। अफ़गानिस्तान के कुछ क्षेत्र दिल्ली सल्तनत के अंग थे।

अहमद शाह अब्दाली ने पहली बार अफ़गानिस्तान पर एकाधिपत्य कायम किया। वो अफ़ग़ान (यानि पश्तून) था। १७५१ तक अहमद शाह ने वे सारे क्षेत्र जीत लिए जो वर्तमान में अफगानिस्तान और पाकिस्तान है। थोड़े समय के लिए उसका ईरान के खोरासान और कोहिस्तान प्रान्तों और दिल्ली शहर पर भी अधिकार था। १७६१ में पानीपत के तृतीय युद्ध में उसने मराठा साम्राज्य को पराजित किया।

१७७२ में अहमद शाह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र तिमूर शाह दुर्रानी गद्दी पर बैठा। उसने अफगान साम्राज्य की राजधानी कन्दहार से बदलकर काबुल कर दी। १७९३ में उसकी मृत्यु हो गयी। उसके बाद उसका बेटा ज़मान शाह गदी पर बैठा। धीरे-धीरे दुर्रानी साम्राज्य निर्बल होता गया।

अन्ततः सिखों ने महाराजा रणजीत सिंह के नेतृत्व में दुर्रानी साम्राज्य के एक बड़े भाग पर अधिकार कर लिया। सिखों के अधिकार में जो क्षेत्र आये उनमें वर्तमान पाकिस्तान (किन्तु बिना सिन्ध) शामिल था।

ब्रितानी भारत के साथ हुए कई संघर्षों के बाद अंग्रेज़ों ने ब्रिटिश भारत और अफ़गानिस्तान के बीच सीमा उन्नीसवीं सदी में तय की। १९३३ से लेकर १९७३ तक अफ़ग़ानिस्तान पर ज़ाहिर शाह का शासन रहा जो शांतिपूर्ण रहा। इसके बाद कम्यूनिस्ट शासन और सोवियत अतिक्रमण हुए। १९७९ में सोवियतों को वापस जाना पड़ा। इनकों भगाने में मुजाहिदीन का प्रमुख हाथ रहा। १९९७ में तालिबान जो अडिगपंथी सुन्नी कट्टर थे ने सत्तासीन निर्वाचित राष्ट्रपति को बेदखल कर दिया। इनको अमेरिका का साथ मिला पर बाद में वे अमेरिका के विरोधी हो गए। २००१ में अमेरिका पर हमले के बाद यहाँ पर नैटो की सेना बनी हुई है।

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