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सुबाह वो शाम हमारी बाद नमाज के आजकार
दुआ ऐसी इबादत है जिस के लिए कोई दिन या वक्त मुकर्रर नहीं बाल्की हर लम्हा मांगे की इजाजत है मगर रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)
सुबाह के अजकार नमाज-ए-फज्र के बाद से तूले शम्स तक पढ़ना अफजल है।
शाम के अजकार नमाज-ए-असर से गुरुबे शम्स तक पढ़ना अफजल है।
मुसिबतों हमारे ग़मों से नज़ात पाने के लिए ज़िक्र वो अज़कार से ज़ायदा मज़बूत कोई हथियार नहीं अल्लाह ताला मोमिन काफ़िर सब की हिफ़ाज़त करता है मगर एक मोमिन जब ज़िक्र वो अज़कार का एहताम करता है।
इस्स ऐप मैं कुरान और सही हदीत से साबित शुदा अजकार ही जमा किया गया है।
अबी वोम आउरबिड निमा अरारी
सुबाह वो शाम हमारी बाद नमाज के आजकार
الحمد لله وحده والصلاة والسلام لى من لا نبي بعده
मोमिन के लिए अल्लाह की याद से बढ़ कर कोई चीज़ इतमिनाने कल्ब का बैस नहीं है अल्लाह ताला का इरशाद है।
" لا بذكر الله تطمئن القلوب "
"सुन लो अल्लाह की याद से ही दिलों को इतना नसीब होता है"।
हम सब अल्लाह ताला की रहमत के मुहताज हैं, एक मोमिन पर जब मुसिबत बहुत है तो वो अपने रब की छत पर झुक जाता है।
अल्लाह ताला का इरशाद है।
" يا يها الذين منو اذکر और اللہ ر ا يرا وسبحوه بكرة وأصيلا "
"ऐ ईमान वालो अल्लाह का ज़िक्र बहुत ज़ियादा करो हमारे सुबाह वो शाम अल्लाह की तस्बीह (पकिज़गी) बयान करो"।
आयते करीमा मैं अल्लाह ताला मोमिनीन को मुख्ताब करते हुए हुए फरमाता है की अल्लाह का ज़िक्र क़सरत से करो हमारे खास तौर से सुबाह वो शाम अल्लाह को याद करो हमारी पाकी बयान करो।
एक मुसलमान जब ज़िक्र वो अज़कार करता है खास तौर से सुबह वो शाम के अज़कार का एहताम करता है तो वो जादू, नज़रे बुरा, हसद हमारी ख़बर जिन्नात वो शयातीन से महफूज़ रहता है।
लिहाज़ा हर मुसलमान को चाहिए की मसनों अज़कार का एहताम करेन में, क्या पढ़ने से नेकी भी मिलेगी हमारा हिफ़ाज़त भी होगी।
अखिर मैं अल्लाह ताला से दुआ ही वो है अदना सी कोषिश को क़बूल फरमाये हमारे ज़खिराए अखिरत बनाये।
अमीन...
द्वारा डाली गई
ผู้บ่าว ไทบ้าน
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