Salmo 78


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Apr 16, 2024 पुराने संस्करणों

Salmo 78 के बारे में

महान स्तोत्र

1 हे मेरे लोगों, मेरी शिक्षा सुनो; मुझे जो कहना है, उस पर कान लगाओ।

2 मैं दृष्टान्तोंमें अपना मुंह खोलूंगा, और अतीत की पहेलियोंको सुनाऊंगा;

3 जो कुछ हम ने सुना और सीखा, जो हमारे माता-पिता ने हम से कहा।

4 हम उन्हें अपके बालकोंसे न छिपाएंगे; हम अगली पीढ़ी को यहोवा के प्रशंसनीय कार्यों, उसकी शक्ति और उसके द्वारा किए गए चमत्कारों के बारे में बताएंगे।

5 उस ने याकूब के लिथे विधियोंको ठहराया, और इस्राएल में व्यवस्या को स्थिर किया, और हमारे पुरखाओं को यह आज्ञा दी, कि वे अपके बालकोंको यह सिखाएं,

6 ताकि आने वाली पीढ़ी यह जान ले, और जो बच्चे अभी पैदा होने वाले थे, वे भी अपके अपके बालकोंको बताएं।

7 तब वे परमेश्वर पर भरोसा रखेंगे; वे उसके कामों को न भूलेंगे, और उसकी आज्ञाओं को मानेंगे।

8 वे अपके पुरखाओं के समान हठीले और बलवा करनेवाले न होंगे, और न परमेश्वर के प्रति विश्वासघाती मन वाले और विश्वासघाती आत्मा वाले होंगे।

9 युद्ध के दिन एप्रैमियोंने हथियार-बन्द धनुर्धर होकर मुंह फेर लिया;

10 परमेश्वर की वाचा का पालन न किया, और उसकी व्यवस्था के अनुसार जीने से इन्कार किया।

11 वे भूल गए कि उसने क्या किया था, जो चमत्कार उसने उन्हें दिखाए थे।

12 उस ने उनके पुरखाओं के साम्हने मिस्र देश में सोअन के देश में चमत्कार किए।

13 उस ने समुद्र को दो भाग किया, कि वे पार हो जाएं; पानी को दीवार की तरह ऊपर उठा दिया।

14 वह दिन को बादल के द्वारा और रात को आग की रौशनी के द्वारा उनकी अगुवाई करता था।

15 और उस ने जंगल की चट्टानोंको तोड़ डाला, और गहिरे जल के जितना जल गहिरे से बहता है, दिया;

16 उस ने पत्यर में से नदियां बनाईं, और जल नदी की नाईं बह निकला।

17 परन्तु वे उसके विरुद्ध पाप करते रहे, और जंगल में परमप्रधान से बलवा करते रहे।

18 उन्होंने जानबूझ कर परमेश्वर की परीक्षा ली, और मांग की कि वे क्या खाना चाहते हैं।

19 उन्होंने परमेश्वर पर सन्देह किया, और कहा, क्या परमेश्वर जंगल में मेज तैयार कर सकता है?

20 हम जानते हैं, कि जब उस ने चट्टान को मारा, तब जल उछला, और बड़ी धाराएं निकलीं। लेकिन क्या वह भी हमें खिला पाएगा? क्या वह अपने लोगों को मांस की आपूर्ति कर पाएगा?”

21 यहोवा ने उनकी सुनी और क्रोधित हुआ; उसने याकूब पर आग लगाई, और उसका कोप इस्राएल पर भड़क उठा,

22 क्योंकि उन्होंने न तो परमेश्वर पर विश्वास किया, और न उसकी बचाने की शक्ति पर भरोसा किया।

23 तौभी उस ने मेघोंको आज्ञा दी, और आकाश के फाटक खोल दिए;

24 उस ने लोगों के खाने के लिथे मन्ना बरसाया, और उन्हें आकाश से रोटी दी।

25 मनुष्यों ने स्वर्गदूतों की रोटी खाई; उन्हें अपनी मर्जी से खाना भेजा।

26 उस ने पुरवाई आकाश से भेजी, और अपक्की सामर्य से दक्खिन पवन को आगे बढ़ा दिया।

27 उस ने उन पर धूलि के समान मांस बरसाया, और पक्षियों के झुण्ड समुद्रतट की बालू के समान बरसाए।

28 उस ने उन्हें छावनी के भीतर, और उनके डेरे के चारोंओर गिरा दिया।

29 उन्होंने मन ही मन खा लिया, और उस ने उनकी इच्छा पूरी की।

30 परन्तु जब तक वे अपके मुंह में भोजन करते रहे, तब तक उनकी भूख तृप्त हुई,

31 परमेश्वर का कोप उन पर भड़क उठा; और उसने उनमें से बलवानोंको मार डाला, और इस्राएल के जवानोंको घात किया।

32 इन सब बातों पर भी वे पाप करते रहे; वे उसके चमत्कारों पर विश्वास नहीं करते थे।

33 इसलिथे उस ने उनके दिन लपके, और उनके वर्ष एकाएक दहशत के मारे समाप्त किए।

34 जब कभी परमेश्वर ने उन्हें मृत्यु दण्ड दिया, तब वे उसको ढूंढ़ने लगे; वे जोश के साथ फिर उसके पास गए

35 उन्हें स्मरण आया कि परमेश्वर उनकी चट्टान है, कि परमप्रधान परमेश्वर उनका छुड़ाने वाला है।

36 उन्होंने अपके मुंह से उसकी चापलूसी की, और अपक्की जीभ से उसको धोखा दिया;

37 उनके मन नेक न थे; अपनी वाचा के प्रति वफादार नहीं थे।

38 तौभी वह दयालु था; उसने उनके अधर्म को क्षमा किया और उन्हें नष्ट नहीं किया। समय-समय पर उसने अपने क्रोध को पूरी तरह से जगाए बिना उसे रोक लिया।

39 उसे याद आया कि वे तो नश्वर हैं, एक बहती हवा है जो लौटकर नहीं आती।

40 कितनी ही बार उन्होंने जंगल में उस से बलवा किया, और सुनसान देश में उसको शोकित किया!

41 वे बार-बार परमेश्वर की परीक्षा लेते थे; इस्राएल के पवित्र को क्रोधित किया।

42 जिस दिन उस ने उन्हें अन्धेर करनेवाले से छुड़ाया, उस दिन उन्होंने उसका बलवन्त हाथ स्मरण न किया,

43 जिस दिन उस ने मिस्र में अपके चमत्कार दिखाए, और सोअन के देश में अपके चमत्कार दिखाए,

44 जब उस ने मिस्रियोंकी नदियोंऔर नालोंको लोहू बना दिया, और वे अपना जल फिर न पी सके,

45 और उस ने झुण्डों के झुण्ड भेजे जो उन्हें खा गए, और मेंढ़कों ने उन्हें उजाड़ दिया;

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